कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से अमेरिका में बेरोजगार होने की आशंका में हजारों H-1B वीजा वर्कर्स ने वहां चार महीने ज्यादा रहने की इजाजत ट्रंप प्रशासन से मांगी है. इनमें बड़ी संख्या में भारतीय हैं.
क्या है मसला
गौरतलब है कि कोरोना की वजह से अमेरिका में बड़े पैमाने पर छंटनी होने का डर है. H-1B वीजा अमेरिकी सरकार विदेशी टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स को देती है, जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय हैं. इसके नियम के मुताबिक अगर ऐसे किसी प्रोफेशनल की नौकरी चली जाती है है तो वह बिना नौकरी के वहां सिर्फ दो महीने रह सकता है. लेकिन अब इन वर्कर्स ने मांग की है कि बिना नौकरी के वहां सरकार कम से कम छह महीने रहने दे.
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क्या है नियम
H-1B वीजा एक नॉन—इमिग्रेंट वीजा होता है जिसके आधार पर अमेरिकी कंपनियां अपने स्पेशलिटी वाले कामकाज में विदेशी कामगारों को नौकरी देती हैं. हर साल अमेरिका की टेक्नोलॉजी कंपनियां हजारों विदेशी कर्मचारियों को रखती हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर भारत और चीन के युवा होते हैं.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अभी तक के अमेरिकी सरकार के नियम के मुताबिक ऐसे किसी कर्मचारी को नौकरी चले जाने के 60 दिन यानी 2 महीने के भीतर अपने परिवार के साथ अमेरिका छोड़ देना होता है.
किस बात की है आशंका
जानकारों का मानना है कि कोरोना से बुरी तरह प्रभावित अमेरिका में आर्थिक संकट और बढ़ेगा और इसकी वजह से बड़े पैमाने पर नौकरियों की छंटनी हो सकती है. 21 मार्च तक खत्म सप्ताह में ही अमेरिका में 33 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं. एक अनुमान के अनुसार अभी कम से कम 47 लाख और लोग बेरोजगार हो सकते हैं. यह भी खबर है काफी संख्या में H-1B वीजा वाले कामगारों की नौकरी भी गई है.
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हालांकि अमेरिका के कर्मचारियों को बेरोजगारी भत्ता जैसी सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन H-1B वीजा वाले वर्कर्स को ऐसा कोई लाभ भी नहीं मिलता. H-1B वीजा वर्कर्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर एक याचिका अभियान शुरू किया है.
इसमें उन्होंने लिखा है, 'हम सरकार से यह अनुरोध करते हैं कि अस्थायी रूप से 60 दिन के ग्रेस पीरियड को बढ़ाकर 180 दिन का कर दिया जाए और इस कठिन समय में H-1B वीजा वर्कस की रक्षा की जाए.' इस याचिका पर राष्ट्रपति कार्यालय तभी गौर करेगा जब कम से कम 10 हजार लोगों का समर्थन हो.